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Question 1. कस्यचिदेकस्य प्रश्नस्य उत्तरं 40-60 शब्देषु लिखत – 2
क. ‘यथा खनन् खनित्रेण…. शुश्रूषुरधिगच्छति’ इति श्लोकं प्रपूर्य अन्वयसहितां व्याख्यां कुरुत ? (द्रष्टव्यम्- 1)
ख. ‘मनः शौचं पञ्चविधं मतम्’ इति श्लोकं प्रपूर्य भावार्थम् अपि लिखत । (द्रष्टव्यम्- 1)
Answer : –
क. ‘यथा खनन् खनित्रेण…. शुश्रूषुरधिगच्छति’ इति श्लोकस्य अन्वयः तथा व्याख्या:
श्लोक: “यथा खनन् खनित्रेण भूमौ तोयं विजानति। तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रूषुरधिगच्छति॥”
अन्वयः:
यथा खनित्रेण खनन् भूमौ तोयं विजानति, तथा शुश्रूषुः गुरुगतां विद्यां अधिगच्छति।
व्याख्या:
जैसे कोई व्यक्ति फावड़े से खोदकर धरती में पानी पाता है, वैसे ही जो विनम्रता और सेवा भाव से गुरु की सेवा करता है, वह गुरु के पास स्थित विद्या को प्राप्त करता है। इसका तात्पर्य यह है कि ज्ञान की प्राप्ति गुरु की सेवा और समर्पण से होती है, जैसे परिश्रम से जल प्राप्त होता है।
ख. ‘मनः शौचं पञ्चविधं मतम्’ इति श्लोकस्य भावार्थः:
श्लोक:
“मनः शौचं पञ्चविधं मतं यत्।”
भावार्थः:
इस श्लोक में मन की शुद्धता के पाँच प्रकार बताए गए हैं। इसका तात्पर्य यह है कि मानसिक शुद्धता के विभिन्न रूप होते हैं, जिनमें सत्यता, करुणा, परोपकार, धैर्य, और समता जैसे गुण सम्मिलित हैं। मन की शुद्धता से ही व्यक्ति नैतिक और धार्मिक रूप से प्रगति कर सकता है।
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